ब्रह्म लीन मां प्रभाती देवी सातु बहना बिजासन माता जी की उपासिका थी। मधुर वाणी सरल स्वभाव तथा दयालु प्रवृति होने के कारण उन्हे अपने जीवन काल में अपार लोगों का साथ और सम्मान मिला। गरीब बेसहारा असहाय और बुजुर्गों के प्रति वह गहरा सम्मान रखतीं थी तथा यथासंभव मदद करने के लिए तत्पर रहतीं थी। मां अपने पति के साथ कंधे से कधा मिला कर कई वर्षों तक गरीबी से संघर्ष करतीं रहीं ओर अपनी संतानों की परवरिश करतीं रहीं तथा उन्हे शिक्षित करवाती रही भले ही मां ओर उनके पति अनपढ़ हीं थे। गरीब होते हुए भी वह सूक्ष्म रूप से दान पुण्य ओर गरीबों की मदद करतीं रहीं ओर संतो के भजन कीर्तन करवाती रही। सातु बहना बिजासन माता जी की कृपा से शनैः शनैः आर्थिक स्थिति सुधरती गईं और सबसे बड़ी संतान की भी नोकरी लग गयीं। यह बात वर्ष 1981 की है।
मां प्रभाती देवी
आर्थिक स्थिति सुधरने के बाद मां ने अपने रिहायशी आवास बाबू गढ़ कमला बाबडी अजमेर में ही सातु बहना बिजासन मां का मंदिर बनवाया। जहां सदा भजन कीर्तन होते रहे ओर धर्म कर्म के कार्य होते रहे। मात्र 46 वर्ष की उम्र में 28 नवम्बर 1991 मे मां प्रभाती देवी का स्वर्गवास हो गया। मां प्रभाती देवी की इच्छा थी कि कुछ जमीन ले कर मेरी समाधि बना देना ओर तीर्थ पुष्कर में एक वृद्धाश्रम बना कर बुजुर्गों की ओर गरीबों की सेवा करना लेकिन वक्त ओर हालातों से ऐसा हो ना पाया।