मै आखिर जंगल का बेजुबान दरकत ही था
बदलती ऋतुओका सामना सदा मै ही करता रहा
दुख दर्द मेरी गोद मे कोई ढेर सारे डालता ही रहा
मेरी छांव मे बैठ कर कोई समय गुजारता ही रहा
मन्नतो के धागो से मुझे वही सदा बांधता ही रहा।
मन्नते पूरी हुई तोखुशियो के दीप जला रहाथा वो
पुरखो औरअपने भाग्य को ही दुआ दे रहा था वो
मन्नतो के धागो से बंधा मै बेजुबान पेड ही तो था
जंगल की दुनिया का छायादार जंगली जीव था।
मन्नते किसी की पूरी हुई पर मै धागोसे बंधा रहा
छटपटा कर मै रह गया वो मोज मनाने लगा रहा।
कईऔर भी आयेगे मन्नतो के धागे से बांधने मुझे
मै फिर पिघंल जाऊगा बैबस देख उन्हे रोते हुए।
हर शाम मेरी ढलती रही इन सूने जंगल मे सदा
भंवर दरकत है जंगल के जो खुश रहते है सदा।
