हर नया छल, हर नये कल को, तबाह करता है
नीयत अपने स्वर अलापती रह जातीं हैं और धन उछलकूद करता हुआ जमी पर गिर जाता है क्यो कि नीयत और धन ग्राहक देख कर रंग बदलते हैं।इस कारण यह मूल्य नहीं बन पाते हैं और जीवन के महायुद्ध में वक्त के अनुसार पाला बदल लेते हैं।नीयत जब नया छल करतीं हैं तो वह आने वाले कल को तबाह करके रख देतीं हैं। नीयत आदर्श के चोले धारण कर तथा दिल में कपट और बगल में छुरिया लेकर जब नया छल करतीं हैं तो हर नया कल उन चोलो में छिपे रावण को बाहर निकाल कर उसकी सोने की लंका को जला कर राख कर देती है और भूमि रत्न के रूप में हरण की गयीं सीता को ले आती है।
नीयत सामाजिक मूल्य नहीं बन पाती क्यो कि उसकी परवरिश लाभ हानि के साथ होती हैं।मूल्य नीति को निर्धारित करते हैं नीयत को नहीं।नीयत तो मनोवृत्तियो से उत्पन्न एक सह उत्पाद होता है जो अवसर देख कर व्यापार भी कर लेती है तो अवसर नहीं मिलने पर घास फूस बन कर ही रह जातीं हैं। मूल्य तो वह सेनेटाईजर होता है जो कीट नाशक ओषधियों को साथ रखता है जो हर संक्रमण को रोकने का काम करता है और अपनी ओषधियों से ज्ञान का लठ्ठ लेकर घूमने वाले मूरखों की छंटनी कर देता है।
नीयत जब सकारात्मकता दिखलाती है तो वह दया दान उपकार की धारा में बह जाती है तथा बिना परवाह किये धन को लुटाने में लगी रहतीं हैं।जीवन के इसी महायुद्ध में जब वह चक्रव्यूह में फंस जातीं हैं तो फिर वही नीयत फिर निहत्थे योद्धाओ को मार गिरा देती है और अपने गुणों की नकारात्मकता का परिचय भी देती है।
नीति एक मूल्य है जहां छल नहीं होता और वह कल को खुशहाल बनाती है। यह अभोतिक मूल्य ही आने वाले कल को भोतिकता का संसार बना कर सभी को सुखी ओर समृद्ध बनाता है। इस नीति को अंजाम देने वालीं नीयत अपने गुणों के कारण इस नीति को चोराहो पर निलाम कर देते हैं और करुणामयी सुरो के तरानो को भी राग भैरवी में गाते हैं। धन की स्थिति उस खरीदी हुई भूमि के टुकड़े की तरह हो जाती है जिसका अग्रिम हमने चुका दिया है ओर वह भूमि विवाद में फंसी रहतीं हैं और धन त्रिशंकु की तरह आकाश में लटका ही रहता है और सांत्वना देने वाला नये स्वर्ग में ले जाने के सपने दिखाता रहता है।
संतजन कहतें है कि हे मानव नीयत ओर धन तो इस जीवन के महायोद्धा होता है जो शरीर को हर जोखिम में डाल देते हैं फिर भी वह अपने शरीर को मरने से बचाते रहते हैं। दुनिया का कोई भी योद्धा केवल मरने के लिए ही महा संग्राम के लिए नही निकालता है क्यो कि सभी को अपनी जान भी बहुत कीमती दिखाईं देतीं हैं। नीयत चाहे बाटने की हो या लूटने की हो दोनो ही स्थितियों में धन को ही बलिदान देना पडता है क्यो कि धन की निष्ठा केवल नीति के साथ जुड़ी रहतीं हैं। बांटने की मंशा नये कल को बल देतीं हैं और नया कल एक नयी समृद्धि को लाता है लेकिन लूट का नया छल आने वाले कल को तबाह कर देता है।
इसलिए हे मानव तू नीयत और धन तो इस जीवन के महायुद्धा एक अस्थायी रेन बसेरे की तरह ही है जो जोखिम में घुसकर भी मरना नहीं चाहते ओर अपने मकसद में लगे रहते हैं और अंत में जीवन के सफर के साथ उनकी यात्रा पूर्ण हो जातीं हैं लेकिन नीति अमर रहती है और ओर एक नयी शुरुआत करती है और अच्छे कल का निर्माण करतीं हैं। इस लिए हे मानव तू नीति में विश्वास रख वह ही नया छल नहीं करेगी और ना ही नया कल तबाह होगा।
