बंजारा बालद मै सामान रख कर बैलो को हाकता जा रहा था और और अपनी घरवाली बंजारन को गीत सुना रहा था- –
बिणजारी ये तू हस हस बोल
बाता थारी रह जासी
अर्थात हे बिणजारी हम व्यापार करने की यात्रा पर निकले है इसलिए तू मन मे क्रोध मत रखना ओर रास्ते मे जो भी मिले उससे प्रेम भाव रख कर ही बातचीत करना भले ही कोई अपने से माल खरीदे या नही खरीदे। इस यात्रा के बाद सफर मे मिलने वाले को केवल अपनी बाते ही याद रह जायेगी और जितना सरल सीधा सच्चा अपना व्यवहार होगा उतना ही लाभ हमे मिलेगा।अंहकार गुस्सा लड़ाई झगडा मिथ्या ओर कठोर वाणी हमारे व्यवहार और व्यापार दोनो को ही नुकसान पहुंचा देगी। जीवन भर यह सब कहते कहते ही बंजारा एक दिन मर जाता है और उस बालद को छोड चले जाता है।
प्राचीन काल मे एक स्थान से दूसरे स्थान पर खाद्यान वस्तुए कपडे जेवर आदि का व्यापार करने वाले को बंजारा कहा जाता था। लकडी की गाडी और उसमे जुते हुए बेल तथा इस बेलगाडी मे रखा सामान यही बनजारे की यात्रा का साधन होता था। गाडी मे बैठा बंजारे का छोटा परिवार जो उसकी यात्रा ओर व्यापार के काम मे हाथ बटाता था। इस बैल गाडी मे चारो तरफ दीवार नुमा लकड़ी जिससे सामान नीचे नही गिरे इसे बालद कहा जाता है।
संत जन कहते है कि हे मानव इस शरीर मे बैठी प्राण वायु रूपी ऊर्जा जिसे आत्मा कहा गया है वह शरीर को संचालित करती है और इन दोनो से उत्पन्न हुआ मन अपनी मनोवृति के ही अनुसार व्यवहार करता है। यहा आत्मा एक बंजारे की तरह होती हो ओर शरीर रूपी बालद को वह अपनी शक्ति से संचालित करती है और मन रूपी बनजारन को समझाती रहती है कि यह सारा जगत बनजारा है यहा व्यापार के अलावा कुछ नही होता है इसलिए हे मन तू गुणी बन कर इस जगत मे व्यवहार करना। जितना अच्छा तेरा व्यवहार होगा उतना ही इस जगत के व्यापार मे तू सफल होगा।
इस जगत मे रिशते नाते अपने पराये आदि सभी तथा साथ ही यह भोतिक ओर अभोतिक संस्कृति सभी व्यवहार के माध्यम से ही जगत मे व्यापार करते है। मन तेरी स्वार्थी मनोवृति के कारण तू पैदा होते ही इस शरीर की चादर को मैला करता जायेगा और इस शरीर रूपी बालद को जर्जरित करके मुझ बंजारे को भाग जाने के लिए मजबूर कर देगा और मेरे जाते ही यह शरीर शव बन जायेगा और शरीर की इस मैली चादर को मसान घाट ही पहली और आखरी बार धो कर उसे पवित्र कर पंचतत्व मे विलीन कर देगा।
इसलिए हे मानव यह मृत्यु लोक है जिसमे हम सब मरने के लिए ही जन्म लेते है और जीवन भर अपने व्यवहारो का ही व्यापार करते है। यह सब कुछ जानते हुए भी मानव अपने इस शरीर रूपी चादर को मैली होने से बचा नही पाता। इसलिए हे मानव तू अपने सेवा कार्यो से जीवो का कल्याण कर ओर दया रूपी दान से अपने हर व्यवहारो को केवल व्यापार के लिए ही मत कर

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