प्रकृति का शक्ति परिवर्तन शरद ऋतु में
शरद ऋतु का नव चन्द्रमा अपनी अपनी यात्रा को आगे बढाता जा रहा है और अपनी नो कलाओ तक नो दिन चलता हुआ नवीन फसलों और वनस्पति उत्पादन को पुष्ट करते हुए उन्हे ठंडे वातावरण में पलना सिखाते हुये हेमंत ऋतु का सामना करने योग्य बना देता है। नये चन्द्रमा के नो दिन और नो रातो मे फसल का उत्पादन पुष्ट हो जाता है इस बीच वर्षा ऋतु तो निकल जातीं हैं पर वर्षा के नक्षत्र पर सूर्य का भ्रमण होने से वर्षा लोट लोट कर ठंडी शरद ऋतु को गीला करतीं रहतीं हैं और शरद ऋतु को शनै शनै ठंडा कर उसे अपने परवान पर पहुंचा देतीं हैं। दोनों ऋतुओ का यह खेल उस गरबा रास की तरह हो जाता है है जिसमें नृत्य करता हुआ अपनी सुध बुध खो बैठता है और वहां सब एक जैसे ही दिखाई देते हैं।शरद और वर्षा ऋतु का यह अनोखा मिलन नयी ऊर्जा शक्ति को उत्पन्न कर देता है और खेतों में उपजी फसल का उत्पादन लगातार पुष्ट हो कर बढता जाता है।
धार्मिक मान्यताओं में घट स्थापना ओर जुवारे बोने के साथ ही नवरात्रा प्रांरभ हो जाते हैं। शरद ऋतु के नव चन्द्रमा की ठंडी रश्मिया इन बोये हुए जुवारे को अंकुरित कर हर रोज़ वृद्धि की ओर ले जाती हैं। शरद ऋतु के काल में भी वर्षा ऋतु तो खत्म हो जाती है लेकिन नक्षत्र वर्षा वाले रह जाते हैं जिनमें भ्रमण करता हुआ सूर्य कही कही एकदम खतरनाक तथा कही पर कम वर्षा करता है। हस्त नक्षत्र से स्वाति नक्षत्र तक सूर्य बर्षा के योग बनाता है। स्वाति नक्षत्र मे सूर्य के भ्रमण तक वर्षा फसलो को तृप्त करती हुई उन्हे ठंडे अमृत रूपी जल नवजीवन प्रदान करतीं हैं।सूर्य भी आगे बढता हुआ इस ठंडे मोसम मे अपनी ऊर्जा की प्रचंडता नहीं दिखा पाता है। शरद ऋतु भी यहां तक 23 अक्टूबर तक आते आते परवान पर चढ़ जातीं हैं और हेमन्त ऋतु की भारी ठंड में प्रवेश कर लेती है।
संतजन कहतें है कि हे मानव प्रकृति शक्ति की प्रतीक मां नवदुर्गा यह संदेश देतीं हैं कि हे मानव शरद ऋतु के नव चन्द्रमा में आलस्य ओर अधिक निद्रा रूपी मधु कैटभ दैत्यो को मार देना चाहिए क्यो कि इस काल में तरह तरह की कीटाणुओं व रोगों की उत्पत्ति हो जातीं हैं जो घर में रोग फैला कर अपना राज़ जमाने लग जाते हैं। महिषासुर दैत्य जैसी भारी ठंड सबको शव बनाने में तुली हुई रहतीं हैं और अपने रूप बदल बदल कर सबको काल के गाल में समाने में लग जातीं हैं। केवल शक्ति की प्रचंडता ही इस के प्रभाव से मुक्त करवाती है। अपने शरीर की ऊर्जा को नवरात्रा काल ओर शरद ऋतु में योग गरबा रास और नृत्य के जरिए तथा खान पान तथा रहन सहन में परिवर्तन करके शनैः शनैः बढानी चाहिए ताकि महिषासुर रूपी ठंड का मुकाबला किया जा सके। शुंभ निशुभ जैसी शिशिर ऋतु में गर्म वस्त्र के पहनने के बाद भी बर्फ की तरह जमाती ठंड को आग के अलाव व गर्म खानपान के जरिए मार भगाना चाहिये। तब ही यह बदलता ऋतु काल इस शरीर में आत्मा के राज्य को जिन्दा रखेगा और सुख समृद्धि प्राप्त कर सकेगा और घर परिवार भी रोंग द्वारा लुटे गये धन से बच पायेगा।
इसलिए हे मानव तू इस शारदीय नवरात्रा में अपनी शारीरिक शक्ति को बढा तथा आलस्य को त्याग ओर श्रम कर ताकि तू ऊर्जावान बना रहे और आने वालीं ऋतु से मुकाबला कर सके। वरन इस काल में उत्पन्न हुये कीटाणु ओर रोग तेरा धन सुख समृद्धि और शरीर रूपी राज्य को छीन लेंगे।
